गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

राजनैतिक उलटफेर...



राजनैतिक उलटफेर


स्वतंत्रता के बाद 2013 के विधान सभा चुनावों ने वह कर दिखाया, जो राष्ट्र पिछले समय तक नहीं कर सका. स्वतंत्रता की परिभाषा वापस आई सी लगने लगी है. स्वतंत्र का मतलब रह गया था - जो तंत्र बनाते हैं उनका तंत्र. वह सही मायने में भारतीयों का तंत्र नहीं था. भारत आर्थिक दृष्टि से गरीब देश भी नहीं है. यदि ऐसा होता तो रॉकेट साइंस कहीं टोकरी में पड़ा रहता. केवल प्राथमिकताएं अलग थीं. कांग्रेस की सरकारों की देखा-देखी आगे की सरकारें भी इसे अपना ही तंत्र मानने लग गई थीं. राजनेताओं का भला होता रहा. स्विस बैंक में रखे पैसों की बात बताती है कि भारत गरीब नहीं है. जनता की जरूरतों से ज्यादा प्राथमिकता अन्य विषय हो गए हैं.

जो बदलाव आया है उसका महत्तम श्रेय मैं कांग्रेस पार्टी को देना चाहूंगा. फिर भाजपा को. अन्य राजनातिक पार्टियां भी इसकी हकदार हैं पर कम. यदि कांग्रेस सरकार का काम ऐसा नहीं होता तो शायद गैर राजनीतिक जनता इस पर न इतना ख्याल ही करती और न ही बवाल मचता. पिछले कुछ अरसे से जिस तरह के स्कैम (घपले) की बातें सामने आए हैं उसने जनता को झकझोर कर रख दिया.

रालेगण सिद्धि के एक व्यक्ति अन्ना ने हिम्मत भरी और कर गए अनशन. जो लोग नेतृत्व का इंतजार कर रहे थे, उनको मौका मिला और साथ हो लिए. अन्ना टीम तैयार हुई. रामलीला मैदान व जंतर मंतर पर प्रदर्शन हुआ. इससे जनता खुलकर सामने आई. वहीं अनशन के एक हिस्से ने राजनीति में जाने व राजनीतिक पार्टी बनाने की सोची. अन्ना गैर – राजनीतिक रहना चाहते थे सो अन्ना सहमत नहीं हुए और दो फाँक हो गए.

नतीजा हुआ आप पार्टी.  इस पार्टी के कामकाज का तरीका अनोखा और भारतीय राजनीति में अनदेखा था. पार्टी ने पहले बगावत किया और दिल्ली राज्य को चुनकर उसकी जनता से घर घर जाकर मिली. अपना उद्देश्य बताया. साथ देने का आग्रह किया. जगह जगह सभाएँ की और जनता को अपने आंदोलन से जोड़ने का भरसक प्रयास किया. जनता की समस्याएं सुनी गई . उन्हे कुछ आश्वासन दिए गए. फिर जनमत का आकलन कर सारी दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे.

उन्हे शायद पूरी जीत की उम्मीद भी नहीं थी, फिर भी 15 से 18 सीट पाने की उम्मीद थी. किंतु चुनावों के नतीजों ने तो पुराने पार्टियों में बौखलाहट पैदा कर दी. कांग्रेस तो सिमट ही गई और भाजपा बहुमत से रह गई.  आप अस्तित्व के साल भर से पहले ही दिल्ली की दूसरी बड़ी पार्टी वनकर उभर आई. भाजपा की हालत तो ऐसी हो गई कि सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी समर्थन के आभाव में वह सरकार बनाने लायक नहीं रह गई. बात अब चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी आप पार्टी पर आकर रुकी. पहले तो आप अपने विचारों पर रहकर कह गई कि हमें बहुमत नहीं मिला है सो हम सक्षम सरकार नहीं बना सकते या नहीं बनाएँगे.  भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते उप राज्यपाल का निमंत्रण मिला और भाजपा यह कहकर बाहर आ गई कि उसके पास बहुमत सरकार बनाने के लिए  का जनादेश नहीं है. अब बारी आई आप की. उपराज्यपालके निमंत्रण पर असमंजस में उनने उपराज्यपाल से समय माँग लिया. शायद यहीं पर निर्णय गलत हो गया.

आप ने  कांग्रेस और भाजपा को अपनी शर्तों के समर्थन का पत्र लिखा. अब कांग्रेस ने अपने पत्ते खोले और कहा कि हम आप पार्टी को निशर्त समर्थन देने को तैयार हैं. शायद आप ने सोचा भी नहीं था कि सरकार बनने की नौबत भी आ सकती है. लेकिन जनता का भरोसा उन्हें उसके करीब ले आया. कांग्रेस के समर्थन से आप को सरकार बनाने के लिए आवश्यक विधायकों की पूर्ति हो गई थी.

अब आई आप पर दुविधा. सारी ताकतें उसे सरकार बनाने हेतु मजबूर करने लगीं. आप ने अपने तरीके आपनाए कि काँग्रेस के जाल में न फँसें और इसलिए जनता के पास दोबारा गई – पूछने कि इन परिस्थितियों में हमें सरकार बनाना चाहिए या परहेज करना चाहिए. उधर भाजपा ने जवाब में 14 सवाल पेश किए. अब देखना है कि होता क्या है...

यह रहा एक पहलू. दूसरा यह कि किसी ने भी नहीं सोचा था कि आप की करिश्माई का इतना असर हो जाएगा. खुद आप ने भी 15-18 सीटों की कल्पना ही की थी. कांग्रेस तो पूरी उखड़ ही गई. भाजपा की हालत शायद कांग्रेस से बेहतर थी, इसलिए वह पूरी तरह नहीं उखड़ी. पर फर्क तो लाजवाब पड़ा. उधर अन्ना लगे थे अपने अनशनों में. इधर आप कमाल कर गई. पुरानी राजनीतिक पार्टियों के पास झुकने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा. पर चेहरा भी तो बचाना है ना. इसलिए भाजपा और कांग्रेस ने अन्ना को मनाने के लिए लोकपाल बिल का सहारा लिया. इसमें कई फायदे थे.

पहला कि अन्ना खुश होंगे. दूसरा केजरीवाल का कद कम होगा. मान लिया तो मुश्किल न माना तो मुश्किल. तीसरा  (सबसे आहम) जनता खुश होगी. और चौथा – 2014 के लोकसभा चुनाव में मुद्दा मिलेगा कि हमने यह कर दिया. इस वक्त दो ही मख्य मुद्दे नजर आते हैं. एक जनता को कैसे खुश किया जाए और दूसरा केजरीवाल का कद कैसे कम किया जाए. दोनों ही पार्टियां अपने अपने व्यवहार में बदलाव ला रही हैं और श्रेय जनता को जा रहा है.

पहले कभी जनता को कोई श्रेय मिला है ऐसा मुझे याद नहीं. पार्टी जीतने के बाद भी जनता की आभारी रहती थी कभी नहीं कहा कि यह जनता की जीत है. श्रेय तो पार्टी के कार्यकर्तओँ को ही जाता था.
चुनाव के तुरंत बाद काँग्रेस को लगा लोकपाल एक अच्छा निर्णय है देश को इसकी जरूरत है और इसे एकजुट होकर पास करवाना चाहिए. कई वर्षों से रुका लोकपाल बिल दो दिन में संसद से पारित हो गया. और अब लोकपाल पास कराने का श्रेय जनता को है.
अमरीका में भारतीय दूतावास के महिला अधिकारी के साथ तथाकथित गलत व्यवहार में भारत की इतनी कड़ी भूमिका रही है. यह भी अनोखा है.
बहुत समय से कोशिश कर रहा भारत अचानक टेगो में बंधक जेम्स की रिहाई में भारत तत्क्षण सफल हो जाता है.
भाजपा के प्रधानमंत्री मनोनीत श्री मोदी जी की आवाज दबी रह जाती है.
भाजपा ने पहले कहा कि सबसे बड़ी पार्टी होने के करण सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत करेंगे लेकिन ऐन मौके पर हालात भाँपकर – उपराज्यपाल के निमंत्रण पर भी पीछे हट गई.

अंततः जनता का भला हुआ.

इन सब की वजह से जितनी देर होगी – आप की मुसीबत उतनी ही बढ़ती जाएगी. भारत में जनता को बाँधे रखना एक बहुत ही मुश्किल काम है. जनता की याददाश्त भी कमजोर है. एक नया मुद्दा आया कि नहीं लोग पुरानी समस्या भूल जाते हैं. पहली बार आप द्वारा ऐसा माहौल बनाया गया है . इसे कब तक बनाकर रखा जा सकेगा यह आप पर ही निर्भर है. यदि नेता और कार्यकर्ता बिदके तो आप के लिए खतरा हो सकता है. उन परिस्थितियों में आप के नेताओं को खासकर सोचना पड़ेगा.

ऐसे में कभी कभी विचार आता है कि यह परिस्थितियां 2014 के लोकसभा चुनावों की वजह से है. यदि चुनाव नहीं होते तो क्या होता...

तब क्या कांग्रेस आप को समर्थन देती.
तब क्या आप सरकार बना लेती या पुनर्चुनाव को कहती...
यह सवाल काल्पनिक और जिरह का विषय है.
सबके अपने अपने मत हो सकते हैं.


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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

दिल्ली के विधानसभा चुनावी नतीजे.




केजरीवाल के आप पार्टी की विधानसभा चुनावों में सफलता को देख कर कई आखें मल रहे हैं. कई के कान भी खड़े हो गए हैं. अब राजनीतिज्ञों में इसे रोकने की होड भी लगने लग चुकी है. चुनावी जीत में दूसरी बड़ी पार्टी होने की वजह से उसे सरकार बनाना ही चाहिए, ऐसा भी एक तबके का मत है. वे यह नहीं कह रहे कि पहली बड़ी पार्टी क्यों नहीं सरकार खड़ा कर लेती. जहाँ तक मेरी जानकारी है आप पार्टी ने अपनी सरकार या नहीं के बारे चुनावों के पहले ही कहा था. अब एक बात जो जुड़ गई है वह है -  अपनी सरकार या विपक्ष - यह बात चुनावों के पहले नहीं कही जा सकती थी. अब देखा जाए तो आप पार्टी अपने बात पर बनी है. सुझाव एक बात है और टिप्पणी दूसरी. सुझाव मानना या न मानना आप पर निर्भर है.

दूसरी तरफ भाजपा जो पहले से ही राजनीति में है, हमेशा की तरह सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से सरकार बनाने का हक रखती है. ऐसा उसने मतगणना के दौरान एक टी वी चेनल पर कहा भी था. वहीं किसी ने पूछा भी कि आपके पास जरूरी संख्या में विधायकों का समर्थन कहाँ है? शायद तब तक ऐसी सोच नहीं बन पाई थी कि भाजपा को पूर्ण ( आधा या दो तिहाई) बहुमत नहीं मिल पाएगा. शायद गणित पर ध्यान नहीं दिया गया था. अब जब भाजपा सरकार बनाने की हलत में ही नहीं है, उसने नया रूख अपनाया - यह कहकर कि पूर्ण वहुमत नहीं होने पर हम सरकार नहीं बनाएँगे. सहीं मायने में भाजपा को ईमानदारी से कह देना चाहिए कि प्रस्तुत हालातों में हमारी सरकार बनना संभव नहीं है चूँकि हमारे पास जादुई आँकडा नहीं है.

काँग्रेस की बात सरकार बनाने के लिए नहीं समर्थन के लिए किया जा सकता है. लेकिन आफ पार्टी तो अपने पहले के सिद्धांत के कारण समर्थन नहीं लेगी औऱ भाजपा को काग्रेस समर्थन नहीं देगी. बचा क्या? सरकार बनने की कोई और संभावना है. सारे अपनी अपनी कह रहे हैं - ठीक है पर समझौता कर सरकार बनाने की कोई आशा नजर नहीं आ रही है.

अब तो पुनर्मतदान ही सहारा है... जो लोकसभा को साथ होगा. नतीजे क्या होंगे -- बेहतर है इस पर मैं कुछ कहने से बचूँ... अबी समय है... वक्त ही बताएगा.


एम.आर.अयंगर.
8462021340

बुधवार, 13 नवंबर 2013

वाह नेताजी वाह !!!! वाह-वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!



                          यदि दैनिक अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की मानें, 

                          तो मुंबई के कांग्रेस अध्यक्ष श्री जनार्दन चाँदुरकर ने 

                          कम्यूनल फोर्सेस को सपोर्ट करने वालों से नागरिक सम्मान 

                          वापस ले लेना चाहिए..

                          शायद नेताजी को लता मंगेशकर जी का नाम लेने की 

                          हिम्मत नहीं हुई. अन्यथा नेताजी ने तो लता मंगेशकर 

                          से भारत रत्न वापस लेने की ही बात की है.

                          भारत के राष्ट्रपति ने जिस नागरिक को सम्मान से 

                          अलंकृत किया हैं, उसे वापस लेने का विचार  

                          किसी ने उछाला, क्या यह वक्तव्य विशेष नहीं है ?

                          शायद श्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री रूप में देखने की 

                          चाहत जाहिर करने की  ऐसी प्रतिक्रिया  !!!!

                          अच्छा होता नेताजी इस पर संयम बरत लेते.
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                                 एम.आर.अयंगर.

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

Telangana....



    What all is transpiring in the name of opposition to Telangana state formation process out of Andhra Pradesh is really shocking. 

The power plant units are put  OFF as a strike feature. Think of the public inconvenience caused to general public.

I am waiting for all those reporting agencies, who call OIL sector officers agitation as " DESH DROH" for their reporting the state of affairs to day. 


Why silent???

Things went to the extant that power to Railways has also been disrupted ... 

News reports say - Darkened Rayala Seema / Andhra etc. 

Pressing your demands and causing inconvenience to this levels are two different  things.

The Joint Action committee for the purpose says it will continue till 20th Oct except sparing Railways... I am afraid which way  and where we are getting driven to?????


Iyengar.
08462021340.


मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

आधार और चारा...




            राजनाति के गर्माने से पहले ही शायद माहौल गरमा रहा है.

        अब देखिए... सर्वोछ्च न्यायालय के आदेश के परिप्रेक्ष्य में अब   
        आधार ( कार्ड) निराधार ही हो गया है.
        
         अब यह आवश्यक नहीं है.

        श्रीमान नीलकेनी के सपने... चकनाचूर हो गए...

         आज भी कई लोग आधार पंजीकरण के बाद भी कार्ड की बाट 
         जोह रहे हैं.. 
       
         उन सबको यह खबर साँत्वना देगी.
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         उधर दूसरी तरफ लालूजी के चारा घोटाला का निर्णय आता 
         दीख रहा है.
  
          न्यायालय ने दोषी तो कहा, पर सजा सुनाना अभी बाकी है...
  
          देखें क्या खबर आती है...

          इतने कम समय में ऐसे तीन प्रमुख निर्मय माहौल गरमाने 
          के लिए बहुत है.
          
          खास तौर पर जब चुनाव सामने हों.


               अयंगर.

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

NOTA



आज भारतीय  राजनीति का ऐतिहासिक दिन है.
सुप्रीम कोर्ट ने - None of The  Above ( NOTA) को मंजूरी दी है.

चाहे यह कानून बने या न बने - बाद की बात है.. लेकिन यह ऐतिहासिक है..

इससे राजनीति में दूसरों को छोटा दिखाने की बजाए अपने को बड़ा दिखाना जरूरी हो जाएगा और

NOTA को सबसे ज्यादा मत मिलने पर सारे प्रत्याशी अस्वीकृत माने जाएँगे और पुनः मतदान में लिए नए उम्मीदवारों को खड़ा  करना होगा..

वैसे यह निर्णय निर्वाचन आयोग से आना चाहिए था लेकिन कोई बात नहीं जो सर्वोच्च न्यायालय से आया.

इसके साथ ही उम्मीद बन जाती है कि देर सबेर - Right to Recall ( RoR) भी आएगा...
उम्मीद पर दुनियाँ जीती है आप भी उम्मीद रखिए


एम.आर.अयंगर.

शनिवार, 7 सितंबर 2013

Our Directions...



It's now Clear from the judgement of apex court followed by the legislation by parliament ...

whether the convicts / jailed / sentenced politicians can vote / retain the membership of  the two houses of the Indian parliament?

Politicians have spelt out their mind and i don't think how to react... I feel it shameful...



Iyengar, M R


रविवार, 28 अप्रैल 2013

Tube well mishaps...



Some years back - for the first time i saw in papers/TV and all other sources of news - that a baby fell in the tube well bore - left open unconciously or otherwise.

Firebrigade and all what not possible engineers etc got involved and rescued the baby with utmost sincerity and efforts. My salutations to all those involved in any manner.

Thereafter off and on I am finding such news in TV channels or in news papers about repetition of such incidences.

It hurts but at times I am perturbed to think do they really happen with the sincerity of the nears and dears or if there is an element of false hood or carelessness.

I have not come across a single news item in any of the news sources that the guilty have been punished for leaving the borewell open and uncovered. Not providing a caution board cardoning the area are secondary measures here. 

Can any one in position think in these lines to prevent repetitions of such chaotic situation involving life...or Can some one ennlighten me about the preventive actions if taken???

Iyengar.

Cognisance ........


यदि मेरी याददाश्त मुझे धोखा नहीं दे रही है तो सुप्रीम कोर्ट ने सी बी आई से  कहा था  कि  -

2 G की जाँच रिपोर्ट सरकार को न दिखाए.

और अब जब सीबीआई के अधिकारी ने हलफनामा ही दाखिल कर दिया...

तो कॉग्निजेंस के लिए कुछ बचा है??

क्या यह कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट नहीं है ??

मुझे न्यायपीठ के कथन का इंतजार है...


अयंगर.

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

Slap...



Why a protesting lady has been slapped?

This is the question raised taking cognisance of the issue.

It's really superb.. for ages many have been slapped, beaten, dragged and even paraded naked in the streets ... no one took cognisance.. and now under the wave this slap is having National importance...

May almighty bless them with Bliss...