शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

दिल्ली के विधानसभा चुनावी नतीजे.




केजरीवाल के आप पार्टी की विधानसभा चुनावों में सफलता को देख कर कई आखें मल रहे हैं. कई के कान भी खड़े हो गए हैं. अब राजनीतिज्ञों में इसे रोकने की होड भी लगने लग चुकी है. चुनावी जीत में दूसरी बड़ी पार्टी होने की वजह से उसे सरकार बनाना ही चाहिए, ऐसा भी एक तबके का मत है. वे यह नहीं कह रहे कि पहली बड़ी पार्टी क्यों नहीं सरकार खड़ा कर लेती. जहाँ तक मेरी जानकारी है आप पार्टी ने अपनी सरकार या नहीं के बारे चुनावों के पहले ही कहा था. अब एक बात जो जुड़ गई है वह है -  अपनी सरकार या विपक्ष - यह बात चुनावों के पहले नहीं कही जा सकती थी. अब देखा जाए तो आप पार्टी अपने बात पर बनी है. सुझाव एक बात है और टिप्पणी दूसरी. सुझाव मानना या न मानना आप पर निर्भर है.

दूसरी तरफ भाजपा जो पहले से ही राजनीति में है, हमेशा की तरह सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से सरकार बनाने का हक रखती है. ऐसा उसने मतगणना के दौरान एक टी वी चेनल पर कहा भी था. वहीं किसी ने पूछा भी कि आपके पास जरूरी संख्या में विधायकों का समर्थन कहाँ है? शायद तब तक ऐसी सोच नहीं बन पाई थी कि भाजपा को पूर्ण ( आधा या दो तिहाई) बहुमत नहीं मिल पाएगा. शायद गणित पर ध्यान नहीं दिया गया था. अब जब भाजपा सरकार बनाने की हलत में ही नहीं है, उसने नया रूख अपनाया - यह कहकर कि पूर्ण वहुमत नहीं होने पर हम सरकार नहीं बनाएँगे. सहीं मायने में भाजपा को ईमानदारी से कह देना चाहिए कि प्रस्तुत हालातों में हमारी सरकार बनना संभव नहीं है चूँकि हमारे पास जादुई आँकडा नहीं है.

काँग्रेस की बात सरकार बनाने के लिए नहीं समर्थन के लिए किया जा सकता है. लेकिन आफ पार्टी तो अपने पहले के सिद्धांत के कारण समर्थन नहीं लेगी औऱ भाजपा को काग्रेस समर्थन नहीं देगी. बचा क्या? सरकार बनने की कोई और संभावना है. सारे अपनी अपनी कह रहे हैं - ठीक है पर समझौता कर सरकार बनाने की कोई आशा नजर नहीं आ रही है.

अब तो पुनर्मतदान ही सहारा है... जो लोकसभा को साथ होगा. नतीजे क्या होंगे -- बेहतर है इस पर मैं कुछ कहने से बचूँ... अबी समय है... वक्त ही बताएगा.


एम.आर.अयंगर.
8462021340

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