गुरुवार, 29 मई 2014

ये क्या हुआ ????

ये क्या हुआ ????

कुछ ही समय तो हुआ है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने रिटायरमेंट की उम्र 60 से 62 वर्ष कर दी थी. बात भले कुछ भी कही गई हो, पर आर्थिक हालात ही शायद सही कारण हैं. पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में यह अब भी 58 वर्ष पर ही टिकी हुई है. 60 से 62 करते समय हमें गर्व था कि हमने देश में सबसे पहले रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 62 की है. शायद भाजपानीत पड़ोसी सरकारों के मुख्यमंत्रियों के बीच का होड़ इसका कारक था.

किंतु केंद्र में भाजपा की सरकार के बनते ही तेवर बदल गए. देश भर में एक समान पद्धति की आड़ लेते हुए, राज्य की भाजपा सरकार ने केंद्र से तालमेल रखने के लिए पुनरावलोकन शुरु कर दिया है. सोचा जा रहा है कि 62 की आयु सीमा को बैक-रोल कर 60 क्यों न कर दिया जाए ? उधर मध्यप्रदेश में 58 वर्ष को 60 वर्ष करने की सोची जा रही है.

एक और विचार उभर रहा है कि समरूपता की आड़ में, निर्णय केंद्र सरकार पर छोड़ दिया जाए और निर्णयानुसार सारे देश में इसे 60 या 62 वर्ष की आयु सीमा तय कर दी जाए.

जिन लोंगों ने 60 पार कर लिया है और 62 की ओर बढ़ रहे हैं उनका क्या होगा. सरकार के फैसले के अनुसार वे अपना प्रबंधन कर चुके होंगे. अब फिर परिवर्तन करना होगा... सरकार के निर्णयों के कारण ... उनमें फेर बदल के कारण.

हो सकता है कि आर्थिक हालातों के कारण सारे देश में रिटायरमेंट की सीमा 62 वर्ष की कर दी जाए.. पर कोई सोचे कि इसका बेरेजगारी पर कैसा असर पड़ेगा. कितने पद रिक्त होने से रह जाएंगे  और फलस्वरूप कितनों की बढ़ोत्तरी रुक जाएगी. कितने नवयुवक रोजगार से वंचित रह जाएंगे. आज के एक बुजुर्ग की तनख्वाह में तीन नवयुवकों को नौकरी दी जा सकती है. और बुजुर्गियत की वजह से सरकार पर पड़ने वाला अन्य खर्च ... सो अलग है.

मेरा तो मानना है कि रिटाय़रमेंट की आयुसीमा घटाकर 55 वर्ष कर दी जानी चाहिए. इसके कई फायदे हैं. पहला कि रिटायर्ड लोंगे के स्थान पर पुनर्नियुक्ति से नवयुवकों को रोजगार मिलेगा. दूसरा 55 वर्ष की आयु में रिटायर्ड व्यक्ति अपनी युक्ति – शक्ति और धन के साथ अच्छी नौकरी तो पा ही सकता है . लेकिन उसके लिए और समाज एवं देश के लिए भी बेहतर होगा कि वह एक निजी व्यवसाय स्थपित कर अन्यों के लिए रोजगार उत्पन्न कराए. और भी अच्छा होगा यदि संपन्न रिटायर्ड व्यक्ति कोई उद्योग की स्थापना करे जिससे उनकी अपनी आमदनी तो बढ़ेगी ही, साथ ही बहुत से लोगों को रोजगार मिलेगा. इस तरह से आयु सीमा 55 करने पर रोजगार की सम्स्या का कुछ हद तक समाधान मिल सकेगा. परिवार-समाज और देश की जो आर्थिक- औद्योगिक उन्नति होगी सो अलग.

सरकारी पद्धतियों का साथ मिले तो क्या कहने ... सोने पर सुहागा.. नए उद्योंगो की स्थापना में बढ़ोत्तरी की जा सकती है और बेरोजगारी की समस्या के समाधान को तेज किया जा सकता है.

मोंने विचार रखए हैं अब निर्मायकों की सोच पर सब कुछ आधारित है... कि ऊँट किस करवट बैठेगा.

लक्ष्मीरंगम

रिटायरमेंट, आयु सीमा, रोजगार





समरूपता - असम और तेलंगाना

समरूपता - असम और तेलंगाना

सालों पहले सन 1978 से 1990 तक असम से संबंध रहा. कुछेक बार वहाँ जाना भी हुआ औऱ बाद में नौकरी पेशे के चलते दो एक साल वहां रहना भी पड़ा.

उन दिनों असम गणतंत्र परिषद की नई नई स्थापना हुई थी. आए दिन असम बंद हुआ करता था. उल्फा या कहें अल्फा तो बहुत बाद  में आई.

वहां जब रहने का मौका मिला तो देखा- जाना कि वहां का मुख्य मुद्दा परदेशियों (वे विदेशी कहते थे) का है. असमियों का कहना था कि परदेशी हमारे देश से पैसा कमाकर अपने देश भेजते हैं और हमारा देश गरीब का गरीब रह जाता है. उनका कहना था कि हम अपनी गति  (लाहे-लाहे) से काम करेंगे और कोई परदेशी यहां काम न करे. हमारी गति की कोई आलोचना ना करे. ऐसे तो प्रगति संभव नहीं थी. इसलिए असम के बाहर के लोग वहां नियुक्त होते थे जिस पर उनको ऐतराज था. उस पर भी मुख्य मुद्दा बंगालियों से था. असम के लोग बंगालियों को दुश्मन से कम नहीं मानते थे. उनकी बातों से लगा कि असम कभी बंगाल का भाग था. या फिर यों कहिए कि असम भारतभूमि से बंगाल के द्वारा ही जुड़ा है सो शायद वे समझते थे कि उनका सारा दुख दर्द बंगाल के ही कारण है.

यह सब देख सुनकर बहुत तकलीफ हुआ करती थी. लगता था कि कैसे हमारे देश में अन्य राज्य के लोग परदेशी हो गए.

बात अब समझ में आई कि ऐसी हालातें कैसे उभरती हैं. हाल ही में आंध्र प्रदेश को विभाजित कर तेलंगाना राज्य बनाया गया. और शुरु से तेलंगाना की अलग शख्सियत के लिए उनके नेता चंद्रशेखर राव जो मुंह आ कहे जा रहे हैं. देश की राजनीति इस विषय पर दो धड़ों में बँट गई थी (और है भी). राज्य के गठन की सूचना मिलते ही उनने कहना शुरु कर दिया कि बँटवारे में आँध्र का कोई भी व्यक्ति तेलंगाना में नहीं रहेगा... खासकर सरकारी कार्यालयों में. सबको जाना ही होगा.

यह ठीक असम की समस्य़ा का रूप ले रही है. जो व्यक्ति सालों से, पीढ़ियों से राज्य के इस हिस्से में बस गया है उसे वापस जाने को कहना...संयुक्त परिवार से कुछ को भगा देने से कम नहीं है.

जिनने राज्य का विभाजन तय किया है उनको इस तरह की समस्याओं पर विचार कर लेना चाहिए था.. कम से कम अब कुछ करें, अन्यथा यह भीषण रूप धारण कर सकती है. कोई उस नेता को समझाए कि उनकी यह जीत पागलपन में न बदल जाए और देश का भला करने के बदले देश के लिए एक और मुसीबत न बन जाए.

लक्ष्मीरंगम.

तेलंगाना, असम




शाही सवारी

शाही सवारी

बचपन से देखते आ रहा हूँ कि कोलकाता के हिंदुस्तान मोटर्स की एम्बेसेडर कार की अपनी शान है. सारे वी आई पी और नगरसेठ सारी सवारियों को परे कर एम्बेसेडर में सवारी करना पसंद करते थे. किसी के घर के सामने एम्बेसेडेर का खड़ा होना ही उसके शान में इजाफा हुआ करता था.

मुझे वह दिन भी याद है जब साठ के दशक में फिल्म नागिन ( गाना - मन डोले मेरा तन डोले वाली) तब मेरे नगर के एक सिनेमा हॉल में इस फिल्म में गोल्डन जुवली मनाई थी और हॉल के मालिक को तथास्वरूप एक चमचमाती ब्लैक एम्बेसेडर पुरस्कार रूप में दी गई थी. हम छोटे छोटे बच्चे थे करीब 9-10 साल के रहे होंगे. काली चमतमाती कार को छू – छू कर महसूस करते थे. साथ में एक दिली तमन्ना भी जागी थी कि बड़े होकर एक काली एम्बेसेडोर रखेंगे. किंतु हमारे बड़े होते तक यह कार आम आदमी के हद से परे हो गई. सो प्रीमियर पद्मिनी से ही संतुष्ट होना पड़ा.
आज आ रही खबरों ने तो दिल बैठा ही दिया. हमारे बचपन की तरह, तब की शान का सवारी आज गुजरा कल बन गई है.

लक्ष्मीरंगम.

शान की सवारी,


मंगलवार, 13 मई 2014

भरपाई कौन करे ?

भरपाई कौन करे ?


तामिलनाडू ने मुल्लापेरियार बाँध के जलस्तर को 136 फीट से 142 फीट तक बढ़ाने के संबंध में सर्वोच्च न्ययालय ने 27 फरवरी 2006 को फैसला सुना दिया. इसके बीच केरल विधान सभा ने एक विधेयक पास किया जिसके तहत तमिलनाडू बाँध का स्तर 136 फीट से 142 फीट तक नहीं बढ़ा सकता.

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 27 फरवरी 2006 के फैसले के बाद, केरल सरकार द्वारा, तमिलनाड़ू को इससे रोकने के लिए  2006 में ही बनाए गए एक कानून पर आपत्ति जताई है और दावा पेश किया. अब तमिलनाड़ू के आवेदन पर विचार कर सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया है उनकी 2006 वाला फैसला कायम रहेगा और यह कि केरल सरकार द्वारा पारित विधेयक कानूनन गलत है तथा तमिलनाड़ू बाँध में जलस्तर 136 फीट से 142 फीट कर सकता है. सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष तौर पर कहा है कि 2006 के फैसले के समय किए गए सभी जाँच परिणामों का पुनरावलोकन कर लिया गया है और सब ठीक है . इनमें से किसी भी रिपोर्ट के अनुसार बाँद को किसी  तरह का खतरा नहीं है.

इस कार्य के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक सलाहकार समिती भी बनाई है. इसमे तमिलनाड़ू, केरल व केंद्र के अधिकारी मनोनीत होंगे और यह समिति बाँध के जलस्तर बढाने के काम की सुपरवाईजरी रोल भी निभाएगी. तमिलनाड़ू सरकार ने अपना मनोनयन पेश कर केंद्र व केरल सरकार से त्वरित कार्रवाई करने हेतु अनुरोध भी किया है.

साथ ही तमिलनाड़ू सरकार ने प्राथमिक कार्यों की शुरुआत भी कर दी है ताकि बाँध का मुख्य काम त्वरित गति से चल सके.

एक सरकार ने प्रस्ताव दिया दूसरे ने आपत्ति जताई, न्यायालय ने फैसला दिया. फिर जिनकी बात न्यायालय से सहमति नहीं पा सकी उनने अगले को रोकने के लिए कानून पारित कर दिया, फिर बात न्यायालय में गई. फिर फैसला आया कि पहले का फैसला कायम रहेगा.

सब तो ठीक है किंतु 2006 में शुरु होने वाला काम 2014 मे – यानी 8 साल बाद शुरु होगा. निश्चित तौर पर खर्च बढेगा. सरकारी तिजोरी से ही खपत होगी. इसका जिम्मेदार कौन ?  

मेरी सर्वोच्च न्यायालय से अपील होगी कि ऐसे मामलों में जिम्मेदारी तय की जाए एवं बढ़े हुए खर्च का भुगतान उनके द्वारा कराई जाए। यह बात सच है कि पहला दे या दूसरा  - खर्च तो भारत सरकार का ही होगा लेकिन राज्य विशेष के खाते का पैसा खर्चेगा तो वहां के विधायक इस बात को समझेंगे व अपना पैसा औरों के लिए खर्च होते देख शायद कुछ सोच समझ कर निर्णय लेंगे.

लक्ष्मीरंगम.


मुल्लापेरियार बाँध, 27 फरवरी 2006

सोमवार, 12 मई 2014

धारा 370 ...सच क्या है..

धारा 370 ...सच क्या है..

चुनावी प्रचारों के दौरान जब भाजपा ने संविधान की धारा 370 के बारे में चर्चा की और कहा कि उनकी सरकार बनने पर इस धारा को निष्प्रभावित कर दिया जागा, तो अब्दुल्ला परिवार से जबरदस्त विरोध हुआ. बाकियों से जो विरोध हुआ सो अलग. सामाजिक मंचों पर भी तरह-तरह  की बातें हुईं कि इसे बनाए रखना चाहिए या नहीं.  इसके रहने के क्या फायदे या नुकसान हैं ?

कईयों ने यहां तक कह डाला कि मोदी को इसका ज्ञान नहीं है कि संविधान की धारा 370 में है क्या ? औरों ने कहा अब्दुल्ला जी एक बार फिर संविधान और धाराएं पढ़ लीजिए. अंततः अब्दुल्ला जी ने कह दिया कि धारा 370 को निर्म करना या आमूल-चूल अप्रभावित करना भारतीय संविधान के तहत असंभव है.

बात यहाँ आकर रुक गई.

अब जब चुनाव संपन्न होने को हैंउमर अब्दुल्ला बोल पड़े. यदि संविधान की  धारा 370 को अप्रभावी कर दिया या, तो काश्मीर भारत के साथ नहीं रह जाएगा.

मेरी समझ में यह नहीं रहा है कि यदि ब्दुल्ला जी के कथनानुसार यदि धारा 370 को अप्रभावी नहीं किया जा सकता, तो अप्रभावी करने के परिणाम पर क्यों सोचा जा रहा है.

मुझे आदित्य जी के कविता की कुछ पंक्तियाँ याद रही हैं  

बेदाम चीज थी तो उस पे दाम क्यों लिखा ?
तुम रति ही नहीं थीं, तो मुझे काम क्यों लिखा?
जब प्यार ही नहीं था मुझसे, फिर तो यूँ कहो,
चुपचाप हथेली पे’ मेरा ना क्यों लिखा?

अब्दुल्ला जी या तो आप गलत कह रहे थे या फिर अब गलत कह रहे हैं...

जरा सोचिए.. सही क्या है...और डर क्यों है...


लक्ष्मीरंगम


धारा 370

गुरुवार, 8 मई 2014

चुनाव – मताधिकार.

चुनाव – मताधिकार.

मतदान के दिन सुबह सवेरे ठीक 0700 बजे मैं वोटर कार्ड के साथ अपने पोलिंग स्टेशन पर पहुँचा. वहाँ दो लाईनों में कोई 20-22 स्त्रियाँ और पुरुष कतार में थे. बारी-बारी से स्त्री और पुरुषों को मताधिकार के लिए, केंद्र में छोड़ा जा रहा था. करीब डेढ-दो घंटे बाद मैं कमरे में पहुँचकर उपस्थित अधिकारी को वोटर कार्ड थमा. उनने एक बार तो मुझे देखा, फिर कहा कि सामने बैठे एजेंट से लिस्ट में मेरे नाम का क्रमांक प्राप्त कर लूँ. जब उनके पास गया तो उनका जवाब था - आप बाहर जाकर बैठे लोगों से ले लीजिए. दो घंटे लाईन में लगने के बाद ये बातें सुनने में मुझे खराब लगीं और मैं केंद्र से बाहर आ गया.

मैं यहाँ तबादले पर आया हूं. लोकसभा में मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मैंनें फार्म 6 भरा, बार बार फालो करने के बाद मुझे वोटर कार्ड मिला. मैंने नेट पर जाकर अपना नाम लिस्ट में देखना चाहा, पर वहां 2013 विधानसभा की ही लिस्ट मिली जिसमें मेरा नाम नहीं था. लेकिन मताधिकार के समय सूची में क्रमांक के लिए मुझे वापस आना पड़ा. किसी भी अखबार में, सूचना पटल पर कहीं भी, रेडियो पर (टी वी में भी) इसकी सूचना नहीं थी कि मतदाताओं की सूची में अपने नाम के क्रमांक की पर्ची लेकर आना मतदाता का सबसे जरूरी काम है, जिसके बिना मतदान नहीं किया जा सकेगा.

गुस्से से वापस घर लौटकर मैंने फिर नेट खोला. वहाँ ceochhattisgarh.nic.in पोर्टल पर मतदाता सूची दिखी. देखा उसमें पता के आधार पर और वोटर कार्ड (एपिक कार्ड - एलेक्टर्स फोटो आईडेंटिटी कार्ड) के आधार पर मतदाता को खोजने के लिए प्रवधान किए हुए हैं. पता के आधार पर या नाम के आधार पर खोजने में दुविधा यह है कि आपके वोटर कार्ड पर लिखे गए नाम या पता पर ही खोजा जा सकेगा. आपको अपनी विधान सभा क्षेत्र संख्या, वार्ड मोहल्ला क्रमांक इत्यादि जानना होगा. उससे आसान है कि वोटर कार्ड के नंबर से खोजा जाए. मैंने सीधा एपिक (वोटर कार्ड ) नंबर वाला तरीका अपनाया और पाया कि मेरा नाम विधानसभा क्षेत्र 21 के भाग 7 में अनुभाग 2 में 1246 क्रमांक पर है. इस सूचना को नोट कर मैं फिर भरी दोपहर 3.00 बजे अपराह्न को केंद्र में गया. वहां जो अधिकारी बाहर बैठे थे उनसे संपर्क किया. उनसे पता चला कि मेरे नाम वाला लिस्ट नहीं मिल रहा है. उनके पास की लिस्ट में 1243 तक के क्रमाँक थे जबकि मेरा नाम क्रमाँक 1246 में होना था. मैंने अपनी पर्ची दिखाई जिसमें भाग, अनुभाग व क्रमाँक लिखा था. मुझे राय दी गई कि मैं अपनी पर्ची लेकर कोशिश करूँ कि मत दिया जा सकता है या नहीं, अन्यथा फिर से वे मेरा क्रमांक वाला पेपर खोजेंगे. केंद्र दोपहर की वजह से (शायद) सूना था और मेरी पर्ची पर पीठासीन अधिकारी ने मुझे मताधिकार का प्रयोग करने दिया. सो मैं बाहर के अधिकारियों को धन्यवाद ज्ञापन देकर अनुरोध किया कि मेरा फोटो वोटर स्लिप मिल जाए तो अगली बार के लिए काम आएगा. लेकिन वहाँ के अधिकारियों ने कहा – अब वोट डाल चुके हैं, अब इसका क्या करेंगे रहने दीजिए. अगली बार नई पर्ची मिल ही जाएगी. मैं घर लौट आया.

देर रात जब दोस्तों में फिर बात चली और मैं अपना वोटर कार्ड लोंगों को दिखा रहा था, तो देखा कार्ड के पीछे विधानसभा क्रमांक व सूची में मेरा क्रमांक (केवल संख्या थी क्रमांक शब्द नहीं था) छपा हुआ है. आश्चर्य की बात कि न ही मुझे इसकी खबर थी कि यह संख्या जो वहां लिखी है - मेरा मतदाता क्रमांक है और न ही केंद्र में किसी को इसका पता था. मैं इस मसले को यहां इसलिए पेश कर रहा हूं कि आगे होने वाले मतदान में लोग इसकी सुध ले और परेशानी से बचें.

साराँशतः—

1)            मताधिकार का प्रयोग करने के लिए वोटर कार्ड से ज्यादा मतदाता सूची में आपके नाम का क्रमांक जरूरी है. यह आप नेट में पा सकते हैं या फिर केंद्र में बैठे सरकारी कार्यकर्ता से भी पा सकते हैं. पहले यह पार्टी के कार्यकर्ताओँ से भी मिलता था लेकिन उसे भी प्रलोभन मानते हुए आयोग ने इस बार सरकारी प्रतिनिधियों को ही यह कार्य सौंप दिया है.

2) वोटर कार्ड के पीछे निर्वाचन अधिकारी के हस्ताक्षर के नीचे निर्वाचन
क्षेत्र का नाम व क्रमांक लिखा होगा और एकदम नीचे (सफेद भाग के अंत में) आपका भाग व क्रमांक लिखा होगा (जैसे 7/1246. भाग 7 क्रमांक 1246).

नए वोटर कार्ड में क्रमांक की यह  जानकारी सही पाई जाती है. किंतु पुराने कार्डों में कभी-कभी परिवर्तन देखा गया है. भारत के दो राज्यों में तो यह मैंनें खुद देखा है. नया भी और पुराना भी.

3) मतदाता पहचान पत्र के नहीं होने पर निम्न में से कोई एक पहचान पत्र स्वीकार किया जाता है.

अ.        ड्राईविंग लाईसेंस
आ. सरकारी कार्यालय या उपक्रमों द्वारा जारी फोटो पहचान पत्र.
इ.          पासपोर्ट
ई.                                  पेन कार्ड
उ.                                  आधार कार्ड
ऊ.                                 फोटो युक्त – सरकारी वैंक य़ा पोस्ट ऑफिस का पासबुक.
ऋ.                                राजपत्रित अधिकारी द्वारा प्रमाणित पहचान पत्र.
ऌ.                                 मनरेगा में दिया गया पहचान पत्र
ऍ.                                  स्वास्थ्य बीमा कार्ड
ऎ.                                  फोटो युक्त पेशन अधिकार पत्र.
ए.                                  वोटर कार्ड.

सबसे बड़ी बात है मतदाता सूची में अपने नाम का क्रमांक साथ रखना. इस बार बी एल ओ को घर-घर जाकर फोटो मतदाता पर्ची बाँटने का कार्य सौंपा गया था. पर ढ़ाक के तीन पात... कहीं बँटे तो कहीं नहीं बँटे. मुझे नहीं मिला.. मताधिकार केंद्र में भी कोई विशेष सूचना नहीं दी गई थी कि मतदाता सूची क्रमांक आवश्यक है, इसलिए कई लोग मतदाता कार्ड/अन्य पहचान पत्र लेकर लाईन में लगे रहे. केंद्र में जाने पर उन्हें लौटा दिया गया और बाहर बैठे बी एल ओ से मतदाता सूची क्रमांक लाने को कहा. कईयों ने तो बिना मतदान किए ही घर का रास्ता पकड़ लिया. यदि इस सूचना से जन-साधारण को पहले से अवगत कराया गया होता तो वे फोटो वोटर पर्ची न मिलने पर बी एल ओ से मतदाता पर्ची लेकर आते और कतार में उनका समय बर्बाद नहीं होता. पढे लिखे लोग नेट से मतदाता पर्ची लेकर आते. अखबारों की मानें तो आँध्र में कम मतदान का एक कारण यह भी रहा है.

इसके लिए संभव है कि आप अपने राज्य के सी.ई.ओ ( मुख्य चुनाव अधिकारी) के पोर्टल पर जाएं. वहां (छत्तीसगढ़ के लिए ceochhattisgarh.net.in)  पर नाम, पता के आधार के साथ और वोटरकार्ड संख्या के आधार पर मतदान केंद्रों व सूची में क्रमांक सहित मतदाता पर्ची   (वोटर स्लिप) उपलब्ध कराया जाता है, जो मतदाता केंद्रों में मान्य है. आप पर्ची प्रिंट कर लें या फिर उसमें की सूचना कागज पर लिख लें दोनों चलेगा.

वोटर स्लिप के आधार पर ही आप को मताधिकार प्राप्त होगा. अन्यथा आप मताधिकार के प्रयोग से वंचित रह जाएंगे.

कुछ खास बात

ऐसा देखा गया है कि मतदाता सूची में क्रमांक की जानकारी व मतदाता पर्ची बाँटने वाले बी एल ओ (ब्लॉक लेवल ऑफिसर) केंदों में सही समय पर न पहुँच पाने के कारण कुछ जगहों पर मतदान देर से शुरु हुआ. इससे से भी बढ़कर खबर यह कि चुनाव केंद्र के अधिकारी समय पर न आ पाने के कारण भी चुनाव देर से शुरु हुए. कुछ जगहों पर चुनाव केंद्रों में कर्मचारियों को ई वी एम के बारे में जानकारी पुनः देने की जरूरत की वजह से भी चुनाव शुरु होने में देरी हुई.
ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आए हैं जहाँ वोटर कार्ड तो है पर नामावली में नाम नहीं है. पिछले बार मतदान किया पर इस बार नाम नदारद है. आँध्र में चुनाव आईकन बनाए गे श्री ब्रह्मानंदं (सिने एक्टर) का ही नाम मतदाता लिस्ट में नहीं मिला. बेचारे सब को वोट करने के लिए प्रेरित करते रहे, पर खुद वोट नहीं दे सके. एक नेता और सिने कलाकार लाईन से परे वोट डालने की कोशिश पर धरे गए. अंततः उन्हें लाईन में आना पडा. कई बुजुर्ग अधिकार से अपरिचित होने के कारण लाईन में लगे रहे. इस बार आयोग ने सानियर सिटिजेन, विकलाँगों को लाईन में लगने की जरूरत को दर किनार कर उन्हें पहुँचते ही मतदान कराने के लिए आदेश दिए हैं. पर जो लोग लाईन में लग गए उन्हें किसी ने नहीं बताया कि उन्हें लाईन में लगने की जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद भी मतदान केंद्रों में विकलांगों केलिए रैंप नहीं बनाए गए.

कुछ राज्यों में मतदाता सूची में नाम जोड़ने, वोटर कार्ड सुधार और मतदान संबंधी विविध सूचनाओं के लिए नेट की सुविधा दी गई. यह सुविधा सारे देश में लागू कर दी जानी चाहिए. हैदराबाद में तो ई सेवा से रंगीन मतदाता कार्ड भी दिए  जा रहे हैं. मतदान के कार्य को ऑन लाईन संपन्न क्यों नहीं कराया जा सकता.

एक और रोचक तथ्य जानने को मिला कि बॉर्डर पर सेवारत जवान वोट नहीं दे पाते. इसी तरह रेल्वे के उस दिन के कार्यरत कर्मचारी, पोलिंग बूथ पर नियुक्त कर्मचारी कुछ ऐसे नागरिक हैं जो मतदान नहीं कर पाते. इनके लिए आयोग को विशेष तौर पर सोचना होगा. पोस्टल बोलेट तो करवाया ही जा सकता है. सेना के तैनात जवानों को मतदान करने से वंचित रखना अशोभनीय लगता है. पोस्टल बेलेट के लिए नियम व तरीकों को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि यदि किसी व्यक्ति विशेष को कार्यवश परदेश भी जाना पड़े तो वह पोस्टल बेलेट दे कर जा सकता है.

आप यह भी जानें कि मतदान केंद्रों मे मोबाइल, हथियार , किसी भी पार्टी का चुनाव चिन्ह खुला ले जाना अपराधिक गतिविधियों के तहत आते हैं. साथ ही आप अपने मत के बारे में किसे दिया है या किसे नहीं दिया है कोई खुलासा मतदान केंद्र से 100 मीटर के दायरे में नहीं कर सकते अन्यथा आप पर कानूनी घाराएं लागू हो जाएंगी. आचार संहिता के आधार पर किसी भी समाज या कौम को भड़काने वाले भाषण, भाषा, जाति के साथ समीकरण बनाने वाले वक्तव्य, अपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित होना या होने के लिए प्रेरित करने वाले काम में सम्मिलित होना  या वक्तव्य देना भी अपराधिक गतिविधियों में आता है. मोदी और नायडू द्वारा वोटों के बारे में चर्चा तो अखबारों में खूब चली.

उम्मीद है कि चुनाव आयोग तक खबर पहुँचेगी और कम से कम अगले चुनाव में इन विषयों का ख्याल रखें कर आवश्यक कार्रवाई करेंगे.

लक्ष्मीरंगम.

मतदान, लोकसभा, एपिक, मतदान पर्ची, वोटर स्लिप.