शाही
सवारी
बचपन से देखते आ रहा हूँ कि कोलकाता के हिंदुस्तान मोटर्स की एम्बेसेडर
कार की अपनी शान है. सारे वी आई पी और नगरसेठ सारी सवारियों को परे कर एम्बेसेडर
में सवारी करना पसंद करते थे. किसी के घर के सामने एम्बेसेडेर का खड़ा होना ही
उसके शान में इजाफा हुआ करता था.
मुझे वह दिन भी याद है जब साठ के दशक में फिल्म नागिन ( गाना -
मन डोले मेरा तन डोले वाली) तब मेरे नगर के एक सिनेमा हॉल में इस फिल्म में गोल्डन
जुवली मनाई थी और हॉल के मालिक को तथास्वरूप एक चमचमाती ब्लैक एम्बेसेडर पुरस्कार
रूप में दी गई थी. हम छोटे छोटे बच्चे थे करीब 9-10 साल के रहे होंगे. काली
चमतमाती कार को छू – छू कर महसूस करते थे. साथ में एक दिली तमन्ना भी जागी थी कि
बड़े होकर एक काली एम्बेसेडोर रखेंगे. किंतु हमारे बड़े होते तक यह कार आम आदमी के
हद से परे हो गई. सो प्रीमियर पद्मिनी से ही संतुष्ट होना पड़ा.
आज आ रही खबरों ने तो दिल बैठा ही दिया.
हमारे बचपन की तरह, तब की शान का सवारी आज गुजरा कल बन गई है.
लक्ष्मीरंगम.
शान की सवारी,
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