आप - दूध का धुला.
केजरीवाल के मन में बहुत अच्छी बातें हैं,
या कहें उनकी सोच बहुत अच्छी है. पर तकलीफ यह है कि - उनमें एक सिस्टम से प्रबंधित
करने वाली काबीलियत की कमी देखी गई है. लगता है उनके हिसाब से उनसे बढ़िया मेनेज
करने वाला है ही नहीं. यहीं पर गाड़ी पटरी से उतर जाती है. उनका राजनीति में आना
भले अन्ना को नहीं भाया, पर यह एक अच्छी बात हुई. उनके आने से और शोर मचाने से लोग
जागे तो सही. अब तक तो हम सब लोग सो ही रहे थे ... किसी के पास चिंता नाम की चीज थी
ही नहीं, कि भ्रष्टाचार अपनी चरम के पार जा रहा है. क्योंकि सबके मन में यही बात
थी कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे... केजरीवाल ने हिम्मत दिखाई. सारे देश को
झकझोर के हिला दिया और लोंगों में चेतना जागी.
इसी नवचेतना का असर था - दिल्ली के
विधानसभा चुनावों के अप्रत्याषित नतीजे. यह बात अलग है कि केजरीवाल अपने को मिले
समर्थन को सही ढंग से सँभाल नहीं सके और कुछ बहक कर, काँग्रेस का समर्थन लेने के
लिए स्वीकृति देकर फँस गए और उसके बाद सँभलने के लिए एक के बाद एक गलतियाँ करते गए. प्रस्तुत सिस्टम को नहीं माना, तीखे - तीखे
बयान देकर सबको, खासकर विपक्ष को अपने विरोध में खड़ा कर लिया.. जो सो रहा था उसे भी जगाकर, विरोध में खड़ा कर
दिया. न काँग्रेस के समर्थन से सरकार बनती और न ही उन्हें कांग्रेस के समर्थन न
मिलने के कारण बताकर (सही या गलत जो भी हो) इस्तीफा देना पड़ता.
दूसरी बात यह कि केजरीवाल को अपने रास्ते
ही मंजूर हैं. जो तुरंत संभव नहीं है. यदि आपको मुंबई से राजधानी में बैठकर कोलकता
जाना है, तो पहले इस राजधानी का रास्ता बदलना पड़ेगा. अन्यथा आप इस राजधानी में
बैठ कर कोलकता जा ही नहीं पाएंगे – दिल्ली पहुँच जाएंगे. लेकिन केजरीवाल चाहते थे
कि जिस राजधानी में भी वे बैठें, वह उनकी जरूरत के अनुसार मुंबई से कोलकता ही जाए.
जो हर बार, हर जगह अपने को एक आम आदमी बताते हैं, इस वक्त वे भूल जाते हैं कि वे
आम आदमी हैं खास नहीं. इसलिए यह रेल अपने निर्दिष्ट रास्ते से ही और दिल्ली ही जाएगी.
केजरीवाल ने ऐसी ही चाल चली... जब प्रस्तुत
विधानानुसार, दिल्ली में विधानसभा के प्रस्ताव – गृह मंत्रालय के अनुमोदन के बाद ही रखा जा सकता है, तो वे
किसलिए जिद कर रहे थे कि यह प्रस्ताव केंद्र में नहीं जाएगा और सीधे उप-राज्यपाल
से होकर विधानसभा के पटल पर रखा जाएगा. शायद वे जानकर भी (ही) भागने का रास्ता खोज
रहे थे. यदि उनमें जज्बा होता तो पहले जानकारी लेने के बाद केंद्र से आवश्यक
तरीकों से चर्चा करते, केंद्र को मनाते या झुकाते – रास्ता बनाते और तब जाकर बिल
उप-राज्यपाल से लाकर विधानसभा में पेश करते.
लेकिन उनने ऐसा नहीं किया. दो ही रास्ते थे – एक अभी के नियमों का पालन करो
या नियम बदलकर अपनी इच्छानुसार करने के बाद, उस पर अमल करो. लेकिन नहीं, केजरीवाल
चाहते थे कि कानून ताक पर रहे और मैं जैसा चाहूँ, वैसा हो.. यह कहाँ की नीति है.
राजनीति की तो बात ही दिगर है. बनिया अपनी दुकान भी इस तरह नहीं चला सकता.
केजरीवाल मुँह फट तो हैं ही. जो दिल मे
आता है कह जाते हैं. – बिना सोचे समझे. जो आंदोलनों के लिए तो ठीक हो सकता है, पर
राजनीति के लिए नहीं. राजनीति में रहने कि लिए कम से कम जुबान की मिठास जरूरी है. किसी
भी तरह नेता कहलाना हो तो जनता को साथ लेकर तो चलना ही पड़ेगा... कैसे .. यही तो
आपकी खासियत है, महारत है.
खुद केजरीवाल ने कहा था कि राजनीति कीचड़
है और उसे साफ करने के लिए राजनीति में यानि कीचड़ में उतरना जरूरी है.. तो फिर,
कीच़ड़ तो लगेगा ही... ओखली में सर तो दे ही दिया... राजनितिक गतिविधियों में कभी -
कभार जो उछल कूद होती है...उससे कीचड़ उछलता है. इसलिए कभी - कभी चेहरे पर भी लग
जाता है. अभी तो किसी ने आप के नेता के मुँह पर कालिख (स्याही) ही मली थी, हो सकता
है कभी चेहरे पर कीचड़ लग जाए.
इसा बात से जाहिर है कि राजनीति के रंग
में रंगकर ही वे अपनी साख बना पाएंगे. दूध का धुला होने की छवि से कुछ नहीं होने
वाला. लोहे को लोहा ही काटता है, तो राजनीति में फर्क लाने के लिए उन्हें पहले राजनीति
के रंग में रंगना ही पड़ेगा. उसके बाद धीरे - धीरे सुधार लाने की सोचना और लाना ही
एकमात्र तरीका लगता है. मैं नहीं कहता कि भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता, पर उन्मूलन शायद ही संभव हो. लेकिन काफी हद तक कम
तो किया जा सकता है. कोशिश करने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए. यह धीरे - धीरे ही
हो सकता है ... झटके के साथ नहीं. झटके से करने के लिए समाज पर आपकी पकड़ इतनी
मजबूत होनी चाहिए कि लोग अंध समर्थन को तैयार हैं या फिर हरेक डरा सहमा हो...अभी
ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है. जिसको पनपने
में कम से कम 65 साल दिए उसके उन्मूलन में कम से कम 35 साल तो दीजिए... पर कोशिश
लगातार होनी चाहिए.
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री रहते हुए गणतंत्र
दिवस के कुछ ही दिन पहले धरना किया.. सबने कहा वे अराजक हैं.. और जोश में केजरीवाल
ने खुद भी कहा हाँ मैं अराजक हूँ... क्या यह कहना उचित था.. मुख्यमंत्री ऐसे काम
कर रहा है जिसे वह खुद अराजकता फैलाना समझता है...खूब किरकिरी हुई .. पर आज देखिए
उसके बाद कम से कम दो और मुख्यमंत्रियों (शिवराज ने तथा किरण रेडडी) ने,
मुख्यमंत्री रहते हुए धरना दिया - पर किसी ने नहीं कहा कि वे अराजकता फैला रहे
हैं. केजरीवाल के काम से लोगों ने सीखा है ... भले केजरीवाल के खाते में बट्टा लगा
हो.
आप, अपने आपको समाज से जितना ज्यादा अलग
रखेंगे उतना ही ज्यादा विपक्ष और मीडिया बाल की खाल निकालेंगे. आप सबसे अलग खड़े
नजर आओगे, इसलिए आप पर सबकी तीखी नजर रहेगी. समान होने के लिए आपको उनमें से एक
होकर रहना होगा. यदि आप सबकी ईमानदारी पर तीखी आलोचना करते रहेंगे, तो सब मिलकर आप
की ईमानदारी की धज्जियाँ उड़ाने की कोशिश करेंगे ... फलतः आपको नुकसान ज्यादा
होगा. यहाँ तक कि ऑटो वाले को 20 रु की जगह 18 रु देंगे या 22 रु दें – तो दोंनों हालातों
में आप की आलोचना, अपनी-अपनी तरह से की जाएगी. सावन के अंधे को तो हरा ही नजर आता
है ना..आप लोगों के निशाने पर होंगे और आपकी हर बात पर तीखी टिप्पणीयाँ की
जाएंगी.. साथ रहकर आप इन तीखी आलोचनाओं से बच सकते हैं...
कितने सरकारी मकान हैं जो पुराने बाशिंदों
के कब्जे मैं हैं...कितनों का नाम अखबारों मे इस कारण आता है.. पर केजरीवाल का नाम
तो आए दिन मुख पृष्ठ पर होता है – एक मार्च को खाली न करने के कारण 65 गुना किराया
भरना पड़ सकता है...कोई तो बताए कितनों ने आज तक 65 गुना किराया भरा है...
केजरीवाल, अपनी पार्टी और पार्टी के
कार्यकर्ताओं को दूध का धुला बताते हैं और बाकी सारों को कुछ - कुछ उपमाएं देते
रहते हैं.. जैसे सारी पुलिस चोर है, विपक्ष बेईमान है - भ्रष्टाचारी है, मीडिया
बिका हुआ है, कांग्रेस 65 सालों से देश को बेच रही है, भाजपा साप्रदायिक है..
दोनों अंबानी के पाकेटों में हैं.. बिजिनेसमेन लुटेरे हैं , दे तो बचा कौन.. केजरीवाल के कथनानुसार मुकेश
अंबानी जो देश को चला रहे हैं.. या शायद न्यायप्रणाली या कहिए न्यायपालिका...जिनके
सहारे देश चल रहा है...बस, केजरीवाल और आप पार्टी के कार्यकर्ता जो मात्र बचे हुए
ईमानदार और देशभक्त हैं जिनके सहारे कंधों पर हमारा देश चल रहा है.
केजरीवाल जी इस पर जरा सोचें... केवल
ईमानदारी पर देश चलाया नहीं जा सकता. क्या विश्व में ऐसा कोई देश है जहाँ भ्रष्टाचार
नहीं है... कहीं कम कहीं ज्यादा है, पर है सभी देशों में. शायद ही कोई देश
भ्रष्टाचार उन्मूलन में पूरी तरह सफल हो सका है अब तक. सामाजिक प्रबंधन, आर्थिक
प्रबंधन, कुशल प्रशासनिक प्रबंधन क्षमता, ईमानदारी, औद्योगिकता एवं प्रगति का सही
सम्मिश्रण ही देश को आगे बढ़ा सकता है, पूर्ण प्रगति दिला सकता है.. किसी एक की
अनुपस्थिति से प्रगति की दर घट जाएगी. समाज बिगड़ जाएगा. बेरोजगारी, गरीबी,
महँगाई, बेईमानी व अपराध सभी, इसकी ही देन हैं. प्रगति की गति जनसंख्या वृद्धि की
दर से ज्यादा नहीं होगी तो प्रगति का असर हो ही नहीं पाएगा. सामंजस्य में गड़बड़ी
होने से देश एक क्षेत्र में काफी आगे बढ़ जाता है और दूसरे क्षेत्र में पीछे रह
जाता है जिससे मुश्किलें पैदा हो जाती हैं.
हम चाँद पर मानव रहित राकेट यान भेज रहे
हैं पर अभी भी देश के बहुत से कोनों में बिजली नहीं पहुँचती...हम आनाज का निर्यात
कर रहे हैं, पर कई गरीब भूखे मर रहे हैं. ऐसा नहीं कि हममें इससे उबरने की काबीलियत
नहीं है, पर हमारी प्राथमिकताएँ अलग हैं. हमारे देश को गोल्डन क्वार्डिलेटरल भी
चाहिए और गावों की गलियों में सड़कें भी. कोलकता व दिल्ली के मेट्रो भी चाहिए और
तामिलनाड़ु के बस भी चाहिए. गुजरात के सहूलियत एवं दिल्ली जैसी प्रमुखता - सभी
चाहिए. गावों में भी शहरी विकास की सुविधाएं चाहिए.. और शहरो में भी गावों की
आत्मीयता चाहिए.. क्यों नहीं हो सकती.. यह असंभव क्यों है.. केवल इसलिए कि हमारी प्राथमिकताए
अलग है.. उनको खुदा मिले, है खुदा की जिन्हें तलाश.. हम बोएं पेड़ बबूल का तो आम
कहाँ से होय... इसलिए सामंजस्य बहुत
जरूरी है.. जिसे आज तक अनदेखा कर दिया गया है.
चलिए लौटते
हैं..इधर राखी बिड़लान के कार का शीशा टूटना या सोमनाथ भारती का गाँव में जाकर रात
को किसी घर की तलाशी करवाने की कोशिश, या आप के विधायक के किराये घर के मालिक के
बहू को जलाया जाना .... मामलो में आप के नेताओं पर लगाए गए आरोप – देश के कई अन्य
नेताओँ पर लगे आरोपों की तुलना में बहुत ही तुच्छ हैं पर कीचड़ आप के नेताओं पर
ज्यादा उछला. क्यों... कई नेताओं के
समर्थकों की भीड़ ने काफी कुछ नुकसान किया है. यह आज की बात नहीं, इस देश की
परंपरा रही है.. और तो और कहा जाता रहा है.. कि समर्थनइतना ता कि इकनी पुलिस भी
नियंत्रित नहीं कर पाई. नेता के चार चाँद लग जाते थे.. लेकिन केजरीवाल के मुंबई
दौरे पर जो हुआ आपने देखा ... उन पर शायद केस दर्ज किया गया है और मुंबई पुलिस
नुकसान वसूलने की कह भी रही है., क्यों ..
केजरीवाल जी शांति से सोचिए.. केवल इसलिए कि आप अपने एवं अपनों को दूध का धुला
बताते है.. बाकी नेता ईमानदारी की कोई बात ही नहीं कहते. कोई इसकी चर्चा तक नहीं
करता. वे केवल इतना कहते हैं कि - इस मामले में मैं दोषी नहीं हूँ. और दोषी पाया
गया तो ... इस्तीफा दूंगा, राजनीति छोड़
दूंगा.. इत्यादि इत्यादि.. एकाध का नाम तो बताईए.... कितने नेताओं ने ऐसा कहा...
कितनों की जाँच सामने खुलकर आई और दोषी पाए जाने पर कितनों ने इस्तीफा दिया या
राजनीति छोड़ी... आप हैं कि .. ढ़ जाते हैं.. दूध के धुले जो हैं.. पता नहीं कितने विराजमान व पूर्व केंद्रीय
मंत्रियों पर कितने कितने बड़े आरोप लगे हैं. लेकिन कोई नगाड़ा नहीं पीटता. अपनी ईमानदारी का, पर आप हैं कि चुप नहीं रह
सकते और अपने को ईमानदार और बाकी सभी को बेईमान साबित करने पर तुले हैं. सो सबकी
तिरछी नजर आप पर है और आप झेल रहे हैं. जितना छीछालेदार आज सुब्रत राय और लालू की
हो रही है, उससे कहीं ज्यादा लोग आप के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर पिले हुए हैं.
कारण केवल एक... आप के नेता और कार्यकर्ता को केजरीवाल दूध का धुला बताते हैं.. और
चाहते हैं कि उनके हिसाब से (बाकी सारे) बेईमान भारतीय एक झटके में ईमानदार बन
जाएं. देश का भ्रष्टाचार उनके आदेश से ही खत्म हो जाए..
एक बार और याद
दिलाना चाहूँगा केजरीवाल जी आप राजनीति में आए हैं.. अब राजनीतिज्ञ हैं किसी स्कूल
या कालेज के टीचर, प्रोफेसर या प्रिंसिपल नहीं.
लक्ष्मीरंगम.
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