मंगलवार, 11 मार्च 2014

एक और प्रतिज्ञा.....

एक और प्रतिज्ञा.....

भारत, स्वतंत्र होने से शुरु होकर आज तक स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. यह प्रति वर्ष भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष व बलिदान की याद दिलाता है और भारतवासियों से देश को समर्पित होने के लिए प्रेरित करता है. उसी तरह सन् 1950 से भारत में गणतंत्र दिवस मनाना शुरु किया गया. इसी साल 26 जनवरी को भारत सर्व प्रभुत्व संपन्न् लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया. इसके अलावा तीसरा दिवस मनाया जाने लगा 2 अक्टोबर... गाँधी जी का जन्म दिन – देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान को समर्पित. फिर बारी आई 14 अप्रेल .. अंबेडकर जयंति, 5 सितंबर – शिक्षक दिवस और 14 नवंबर – बाल दिवस. खासतौर पर ये दिवस देश के विशिष्ट नेता ( व्यक्ति के जन्म दिन पर उनकी विशिष्टता के उपलक्ष में मनाए जाने लगे.

तब केवल इतने ही दिवस मनाए जाते थे. फिर आया शहीद दिवस...30 जनवरी – गाँधी जी की वर्धंति... देश के स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को समर्पित.

उसके बाद न जाने कब कब और कौन कौन से दिन आ गए अब तो याद भी नहीं. शायद 30-40 % हमें पता भी न हो. सुरक्षा दिवस, हिंदी दिवस, सद्भावना दिवस, कौमी एकता दिवस, वोलेंटाईन डे, विजिलेंस डे, और न जाने कितने हैं.

एर दूसरा सिरा प्रारंभ हुआ.. सिस्टर्स डे, ब्रदर्स डे, मदर्स डे, फादर्स डे, गर्ल चाइल्ड डे, लिटेरेसी डे, फ्रेंडशिप डे, पितृदिवस, माता दिवस और अभी मानाया वुमेंस डे,

बात हुई कि साल में हम कितने दिवस मनाते हैं. और उन पर कितनी श्रद्धा रखते है. पहले तो कोई दिवस नहीं मनाया जाता था पर हर कोई दूसरे की इज्जत करता था , सभी एक दूसरे के सहायक होते थे. बड़ों को आदर मिलता था ( बिना माँगे).  माता – पिता- गुरुजनों के प्रति श्रद्धा भाव अपार था. पर आज हमारी संस्कृति इतनी भयानक हो गई है कि अब हमें इन सब दिनों को हर साल मनाकर याद दिलाना पड़ता है कि यह भी हमारी जरूरत है.

और तो और अब तो हर दिन पर प्रतिज्ञा करने का रिवाज चल पड़ा है. चाहे सद्भावना दिवस हो या सुरक्षा दिवस. शायद किसी दिन हमें अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने की कसम खानी पड़े. यह दिन न देखने मिले तो सौभाग्य होगा.

भारतवासी अब फार्मालिटीस में विश्वास करने लगे हैं. प्रतिज्ञा दिलवा दी ...मेरा काम पूरा.. अब साल भर कोई क्या करता है यह जिम्मेदारी मेरी नहीं है. इसलिए साल भर कोई याद भी नहीं करता कि कोई कसम खाई है या शपथ ली है.

ऐसे कई दिवस और कई प्रतिज्ञाएं हैं, जिसमें से बहुत तो मैं जानता भी नहीं और जो कुछ जानता हूँ तो उनका यहां जिक्र करने की जरूरत नहीं समझता.

मैंने अपना अभिप्राय जाहिर कर दिया है ... समझने के लिए इतना काफी है.. जो न समझना चाहे उसके लिए कुछ भी करना फायदेमंद नहीं होगा.

ऐसी प्रतिज्ञाओं से परेशान होकर एक दिन मैंने कहा भी था...

साल भर हम सो रहे थे, एक दिन के वास्ते ,
जागते ही ली जम्हाई , और फिर हम सो गए..

हम प्रतिज्ञा करने के बाद कॉन्फ्रेंस रूम से बाहर आने के पहले ही भूल चुके होते हैं कि किस बात की प्रतिज्ञा ली थी...

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लक्ष्मीरंगम.


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