मोदी
लहर...
हालातों से
लगता है कि सबने अब मान ही लिया है कि इस बार चुनाव में कांग्रेस पार्टी जीत से
काफी दूर है. लेकिन किसी ने भी नहीं कहा कि काँग्रेस विपक्ष में होगी...तो क्या यह
मतलब निकाला जाए कि काँग्रेस विपक्ष में भी नहीं रहेगी. यदि हाँ तो पहला सवाल यह
उठता है कि जनमानस पक्ष एवं विपक्ष के बारे क्या सोच रही है.
जहाँ पक्ष की
बात करते हैं तो बात आती है देश में मोदी लहर की.... भाजपा कहती है लहर है और बाकी
कहते हैं नहीं है... तरह तरह के सर्वे लेकिन मोदी को पक्ष में ही बात कर रहे हैं.
यह मानना कठिन है कि सर्वे कितने भरोसे मंद हैं. लेकिन आज उपलब्ध भी तो यही हैं.
मीडिया का भी खासकर यही कहना है कि अगला राज मोदी-राज होगा.
मोदी के भाषणों
में केवल काँग्रेस पर धावा बोला जाता है. बाकी के बारे कुछ कहते ही नहीं. उनकी
दुश्मनी केवल काँग्रेस से प्रतीत होती है. कांग्रेस के भाषणों में मुख्यतः भाजपा
का एवं समान्यतः क्षेत्रीय पार्टियों एवं आप पार्टी का विरोध होता है. भजपा के वक्ता
आप पार्टी या केजरीवाल का नाम भी नहीं लेते. शायद उनकी नजर में आप पार्टी अस्तित्वहीन
और केजरीवाल नगण्य हैं या फिर उनका नाम लेने से मचने वाले बवाल से भाजपा नेता डरे
हुए हैं. हाल के क्रिकेट मैचों में दिए जा रहे भाजपा प्रसारण इस बात की गवाही देते
हैं. भाजपा आप पार्टी के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपना हक जमाने की कोशिश कर रही
हैं. क्या जनता अनभिज्ञ है इन बातों से ?
इधर केजरीवाल
अन्ना से बिखरकर आप पार्टी लाए. पार्टी की विचारधारा और घर घर संपर्क से दिल्ली के
विधानसभा चुनावों में अनहोनी कर गए. 14 साटों की उम्मीद कर 28 सीट पा गए. अपने –
किसी को समर्थन न देने और समर्थन न लेने के – निश्चय से हटकर, भागने का रास्ता न
पाकर, कांग्रेस से समर्थन को स्वीकारा और सरकार बना गए. शायद यही उनकी पहली और
प्रमुख भूल थी. उसके बाद इस गलती को छिपाने - बचाने के लिए गलतियों पर गलतियाँ
करते रहे. बहुत देर बाद समझ आया कि इस समर्थन से उनके वादों का काम हो ही नहीं
सकता. जो हुआ सो भी आधा अधूरा रह गया – जिसके लिए मीड़िया एवं विपक्ष दोनों ने खूब
खिंचाई भी की. अब उन्हें सरकार से भागने की जल्दी हो गई और अफरातफरी में कई कोशिश
किए—कुछ सही तो कुछ गलत और अँततः जनलोकपाल बिल के मामले गलत तरीके से सरकार छोड़
दी. कई तो अभी भी कहते हैं कि सरकार छोड़ने का मुख्य कारण लोकसभा के लिए चुनाव
प्रचार हेतु समय निकालना था.. जो सही नहीं लगता... चुनाव के लिए क्या अन्य मुख्य
मंत्री समय नहीं निकाल रहे हैं. शायद
केजरीवाल कांग्रेस - भाजपा के कंधों में बंदूक रखकर गोली चलाना चाहते थे ताकि उन्हें
सरकार छोड़ने का भावनात्मक फायदा लोकसभा के चुनावों में मिलता. विपक्ष ने ऐसा न हो
पाने के लिए अपनी जोर लगा दी. अब चुनाव बताएँगे कि केजरीवाल को इस कदम से लाभ हुआ
या हानि.
उधर काँग्रेस एक
असरदार मुखिया की कमी से जूझ रही है...धाकड़ नेता मोदी लहर की खबर पाकर, शायद हार
की डर से चुनाव लड़ना नहीं चाह रहे हैं. कांग्रेस आलाकमान ने कुछ को तो धर दबोचा
और उन्हें चुनाव लड़ाया जा रहा है. कुछ को
राज्यसभा में मनोनीत करवाकर चुनाव लड़ाया जा रहा है. कुछ ने तो आलाकमान की भी नहीं
मानी – कह गए चुनाव नहीं लड़ना है... पता नहीं क्या करने का इरादा है. और कुछ नैया
डूबती देख कर, दूसरी नैया पर सवार हो गए. इस तरह काँग्रेस बिखरती सी दिखी. जिसने
कांग्रेस की हार के सिद्धान्त को और बल दे दिया.
लौटते हैं
भाजपा पर. सब तरफ शोर मचा रखा है भाजपाईयों ने और मीड़िया वालों ने कि देश में
मोदी की लहर है. मुझे तो लग रहा है कि बुजुर्गों ने तो मोदी की हवा ही निकाल दी
है. हो सकता है मोदी इन सबसे श्रेष्ठ हों पर इनके साथ ऐसा व्यवहार किसी – अपने आपको
अनुशासनिक कहने वाले दल के शीर्ष कहे जाने वाले नेताओं द्वारा – बदनामी का पूरा
पूरा कारण ही हैं. यदि इन्हें अलग करना था तो समय से पहले कदम उठाकर इनसे बात करते
और मसले का सलह कर लेते . लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अपने बुजुर्गों के साथ ऐसा बर्ताव व
अपमान करने से इज्जत नहीं बढ़ती. कल तक
मोदी लहर की बात करते वक्त किसी तरह के अंदरूनी कलह की बात नहीं हुई अब जब टिकट
धारकों की सूचियाँ आने लगीं तो सारा कालिख बाहर आ गया. अब लगता है कि आप पार्टी से कहीं ज्याद कलह तो
भाजपा में ही है. सबका रक्तचाप बढ़ा और संयम, सीमाएं लाँघ गया. इसी लिए लोग पूरी
उत्कंठा से वाचाल हो रहे हैं. यह भाजपा को अच्छा खासा नुकसान पहुचा सकता है. ऐन
मौके पर आकर उनसे बदतमीजी का सा व्यवहार किया गया . एक के बाद एक ... मुरली मनोहर
जोशी, लालजी टंडन, करुणा शुक्ला, अड़वानी, जसवंत सिंह, शत्रुघ्न सिंहा, नवजोत सिद्धू
सभी के साथ करीब करीब एक सा व्यवहार हुआ. ऐसा सुनने में तो आ रहा है कि सुषमा भी
कतार में हैं.. आश्चर्य नहीं गुजरात की तो परंपरा ही बनी हुई है जो साथ न चले उसे
अलग कर दो...क्योंकि नेता प्रत्य़क्ष रूप से काम करता है. गुजरात की राजनीति अब
सारे देश की भाजपा में चल रही है और यदि सफल हुए तो सारे देश में चलेगी..इसमें कोई
संशय नहीं हैं.
भाजपा शायद चूक
रही है कि यह सब नेता अपनी पैठ रखते हैं और इनके निष्कासन का असर भाजपा पर पड़ेगा...
शायद इसीलिए 300 + पहुँची भाजपा
अब सीटों का शोर करने से परहेज कर गई है. एक बार ऐसी खबर भी आई थी कि बहुमत न
मिलने पर सहयोगी दलों के समर्थन से बनी भाजपा सरकार में मोदी नहीं बल्कि चंद्रबाबू
नायड़ू प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे क्योंकि सहभागियों को शायद मोदी रास न
आए. यानि मोदी सरकार के दिल में कहीं न कहीं चोर छुपा है.
मीडिया और समाचार
पत्रों की अपनी कहानी है. उनके लिए आज देश में केवल एक पार्टी है भाजपा. उनके
रवैये से तो लगता है कि सारे भाजपा के प्रचारक हैं. इसकी उन्हें स्वतंत्रता है. इनमें
न ही कोई कांग्रेस की बात करता है न ही आप पार्टी की और न ही क्षेत्रीय पार्टियों
की. हाँ आप का ब्लैक आऊट साफ नजर आता है.
अरविंद ने कहा मीड़िया पक्षपाती है.. कम से कम आभास तो ऐसा ही हो रहा है.
मीडिया ने तो क्षेत्रीय पार्टियों – तेलुगु देशम, वाई एस आर कांग्रेस, त्रिणमूल
कांग्रेस, असम गणतंत्र परिषद, माकपा, बीजेडी, सपा, बसपा, डीएमके अकालीदल, आर जे ड़ी,
लोक दल और जितनी छोटी छोटी पार्टियों का तो समाचारों से नामोनिशान मिटा दिया है.
अब लगने लगा है
कि भाजपा अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई है. यह किसी भी शक के दायरे से बाहर हो
चुका है कि भाजपा को 300 से कम सीटें मिलेंगी.. शायद 272 तो मिल ही चुकी हैं जनता
ना करे कि किसी कारण उन्हें 272 से कम सीटें आएँ और उन्हें अन्य क्षेत्रीय दलों का
समर्थन लेना पड़े. यदि ऐसा हुआ तो जो दल नकारे जा रहे हैं क्या वे समर्थन देंगे और
यदि हाँ तो किन शर्तों पर. शर्तों को कड़वा घूँट पाकर मानना भाजपा की मजबूरी होगी
और सरकार तो ढ़ीली पड़ेगी ही. तो क्या आज युग पुरुष कहे जाने वाले मोदी प्रधान
मंत्री बन पाएँगे ??? यह अति
आत्मविश्वास न ही मोदी के लिए उचित है, न भाजपा के लिए और न ही देश के लिए. इससे
परहेज करना चाहिए.
उम्मीद पर
दुनियाँ कायम है, उम्मीद करें, प्रयत्न करें – लेकिन दूसरों को लात मारकर – मिटाकर
नहीं. पीछे से कोई गाड़ी हार्न मार रही है तो बड़प्पन इसी में है कि उसे रास्ता
दें और पास के लेन में अपनी गति से चलें. उसकी रफ्तार तेज होगी तो वह आगे
बढ़ेगा..मान लीजिए... रास्ता रोककर खड़े रहने में कोई बड़प्पन नहीं है. रास्ता मत
रोक्ए – लेन ब्लॉक मत कीजिए. डॉ ईश्वर चंद्र
विद्या सागर ने एक बार स्कूल में बोर्ड पर खींची लकीर को छोटा करने के
लिए नीचे एक बड़़ी लकीर खींची थी. लेकिन आज की राजनीति में अपनी संभावित लकीर
खींचकर फिर पहली को मिटाकर छोटी कर देना आम बात हैं. यही कुंठित मानसिकता हमें
पनपने नहीं देती.अंजाम है कि आगे पाठ तो पीछे सपाट. हम चाँद पर यान भेज रहे हैं
लेकिन आज भी गांवों मे बिजली, पानी , भोजन इत्यादि की कमी है.
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एम आर अयंगर.
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