शहीद नेवल ऑफिसर, किरण शेखावत
दो दिन पहले अखबार
में पढ़ा, तो सर चकराया. आँसू गालों पर ढ़लने लगे. सोचा क्या हमने यही सीख पाई है ?
हाल ही में
गोवा के दायरे में नौ सेना का एक डॉर्नियर का हादसा हुआ. इसमे हरियाणा की रहने
वाली नेवल ऑफिसर किरण शेखावत जी शहीद हो गई.
शेखावत हरियाणा के कुर्थला गाँव की रहने वाली हैं.
हादसे के बाद
जब से उनका पार्थिव शरीर गाँव पहँचा है, आस पास के गाँवों के लोग भी उन्हें
श्रद्धाँजली देने उमड़ पड़े हैं. घर वालों ने तो यहाँ तक कहा कि शादी से ज्याहा
लोग तो शहादत पर आए है. अखबारों ने भी कहा कि हादसे के बाद से कुर्थला गाँव, जिसे
कोई जानकार ही नहीं था. पूरे भारत के नक्शे पर आ गया है. खेतो के मजदूरों से लोग
कुर्थला का पता पूछते हुए आ रहे हैं.
यहाँ तक तो सब
कुछ अच्छी बात हुई.
कल अखबार में
पढ़ा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर जी भी किरण को श्रद्धांजली अर्पित
करने जाना चाहते थे. उनके कार्यालय ने फोन करके घर वालों को इस बारे में सूचना
दी. किसी कारण वे नहीं जा सके , कार्यक्रम रद्द हो गया. दूसरी बार भी ऐसा ही हुआ.
मुख्यमंत्री के
आगमन का कार्यक्रम होने की जानकारी के बाद कोई कैसे चुप बैठ सकता है. दो बार
कार्यक्रम रद्द होने के बाद अगली खबर न पाकर घर वालों (शायद ससुर जी) ने
मुख्यमंत्री कार्यालय में फोन कर उनका कार्यक्रम जानना चाहा. वहाँ से मिले जवाब को
सुनकर उन्हें सदमा हुआ. होना ही था . जिस बात को जान कर हमें दुख हो रहा है उस बात
को सुनकर रिश्तेदारों को तकलीफ होना तो स्वाभाविक ही है.
अखबारों में
बताया गया है कि मुख्यमंत्री कार्यालय से उनका प्रोग्राम जानने के लिए फोन करने पर
कहा गया – “ यदि
मुख्यमंत्री आ जाएंगे तो क्या उनकी शहादत सफल हो जाएगी.”
यदि ऐसा कहा
गया है तो सच में बड़ी शर्मिंदगी की बात है. एक तरफ शहीद के परिवार के लोग वैसे
ही दुखी हैं कि उनने परिवार का एक सदस्य खो दिया. दूसरा लोग शहादत को इज्जत देकर
परिवार को साँत्वना दे रहे हैं. ऐसे वक्त पर शहादत को श्रद्धाँजली देने की बात
तो दूर, उनसे इस तरह की बदतमीजी से पेश आना बहुत ही शर्मिंदगी की बात है. अखबार ने
यह भी लिखा है कि शहीद के ससुर ने अब उन्हें आने से मना कर दिया है.
इस खुद्दारी
को सलाम करने को जी चाहता है.
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