बुधवार, 2 जुलाई 2014

राज्यपाल .....

राज्यपाल ...

जब भी किसी नए प्रधानमंत्री का पदार्पण हुआ – सबसे पहली गाज गिरी राज्यपालों पर. उसके बाद विभिन्न आयोंगों के अध्यक्षों पर बाद में सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के अध्यक्षों पर... इसके बाद निजी सचिव इत्यादि पर.

निजी सचिव तक तो बात समझी भी जा सकती है. लेकिन राज्यपालों तक को पद छोड़ने के लिए कहना या हटाना कितना न्यायसंगत है यह जानना जरूरी है.

राज्यपाल राज्य के लिए और राष्ट्रपति राष्ट्र के लिए समान मायने रखता है ऐसी मेरी अवधारणा है. यदि यह सही है तो राज्यपाल की तरह राष्ट्रपति पर भी कुछ आँच आनी चाहिए लेकिन ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च पद पर आसीन हैं. राष्ट्रपति की तरह राज्यपाल भी किसी पार्टी विशेष के नहीं रह जाते. यह बात और है कि व्यक्तिगत रूप से वह किसी भी दल की नीतियों का समर्थन करता हो. फिर भी मानवीय व्यवहार में कितना भी हो, फर्क तो पड़ता है. कुछ निर्णय जो स्वविवेक पर होते हैं उनमें अप्रत्यक्ष रूप से इसे देखा जा सकता है ऐसा मेरा मानना है.

यदि सरकार सुचारू रूप से चलाने के लिए केंद्र के साथ राज्यपाल को बदलना इतना ही आवश्यक हो तो क्यों न हम संविधान में संशोधन कर ऐसा प्रस्ताव पारित करें ताकि हर बार नए केंद्रीय मंत्रिमंडल के साथ नए राज्यपालों की भी नियुक्ति की जा सके. आज की तरह नए सरकार द्वारा राज्यपालों को पदत्याग करने की सलाह – क्या उनके महामहिम होने के भाव का आदर करता है ?

मुझे इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कौन रहे कौन जाए पर जिस तरह से हटाया जा रहा है या हटने को कहा जा रहा है वह श्रद्धेय नहीं है. जिसे आदर पूर्वक महिमामंडित किया है उनको इस तरह ठोकर मारना सरासर अनुचित है.

राष्ट्रपति के पास राज्यपालों को पदच्युत करने का प्रावधान है पर क्या वह सम्माननीय है? पदच्युत करने का कोई जायज कारण होना चाहिए जैसे किसी गबन में शामिल हों, या कोई दंड संहिता या आचारसंहिता के अनुसार दंडनीय अपराध हो गया हो... न कि केवल इसलिए कि सरकार बदल गई है..

ऐसी परिस्थितियों में गड़करी द्वारा अड़वाणी को राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त कहा जाना दो चिड़ियों का शिकार करता नजराता है. एक कि अड़वाणी जी को कोई और पद मिलने की संभावना को नकारना दूरा...क्या कहूँ...

अच्छा हो कि देश में एक नियमित पद्धति लागू हो जाए. वे लोग जो ऐसी पदों पर आसीन हैं जिनके द्वारा ऐसी जरूरी तबदीलियाँ लाई जा सकती हैं उनसे मेरा अनुरोध रहेगा कि इस पर विचारें एवं सम्मत हों तो विचारों को आगे बढ़ाए. अखबार नवीस भी इस पर चर्चा कर इसे जनमानस तक पहुँचाने में मदद कर सकते हैं.
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 लक्ष्मीरंगम

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