सोमवार, 29 जून 2015

प्रभू की सेवा और मेवा.


प्रभु की सेवा और मेवा.
इसी साल रेलवे बजट में प्रभु ने कहा था कि हम किसी प्रकार से किराया में वृद्धि नहीं करेंगे बल्कि इस वर्ष हम रेल यात्रियों की सुविधाओं की तरफ ध्यान देंगे. पटरियों का संवर्धन, रेल-गत सुविधाओं में उन्नति व सुधार, नए रेल एंजिन व बोगियाँ, बायो – टॉयलेट की सुविधाएं. अच्छे खान पान की व्यवस्था, सामान्य व महिला यात्रियों की सुरक्षा इत्यादि पर जोर देकर ध्यान देने की बात को दोहरा कर कहा था. सही बात थी कि रेल बडट में यात्री भाढ़ा नहीं बढ़ाया गया.

नई दिल्ली स्टेशन का एसी यात्रियों का प्रतीक्षालय-1

किंतु समय के चलते सरकार ने परोक्ष रूप  से ऐसे कदम उठाए कि एक के बाद एक कई बातें बेतुकी साबित हो गई.

प्लेटफार्म टिकट 5 से 10 रु का हो गया... कारण बताया गया कि स्टेशनों पर भीड़ कम करनी है. कुछ हुआ...? केवल गरीब की जेब खाली हो गई. अच्छा हो कि इसके लिए भी एक मासिक टिकट का विकल्प दे दिया जाए.



सर्विस टेक्स बढ़ा दिए – टिकट की कीमतें तो अपने आप बढ़ गईं. साथ ही साथ बाजार की हर वस्तु मँहगी हो गई. यात्रियों के खर्चे तो बहुत बढ़ गए. 

नई दिल्ली स्टेशन का एसी यात्रियों का प्रतीक्षालय-2
गाड़ियाँ शायद बढ़ी हों, पर वेटिंग रूम की हालत तो बदतर हो गई है. पहले, दूसरे दर्जे के लिए अलग व प्रथम श्रेणी के लिए अलग प्रतीक्षा कक्ष होते थे.  फिर एसी आया तो एसी को प्रथम श्रेणी से जोड़ा गया. अब समय बदला है और एसी व एसी प्रथम में सफर करने वाले यात्री बेइंतहा बढ़े हैं. साफ जाहिर है कि रेलवे की कमई में भी बढ़ोत्तरी हुई है. लेकिन आज भी एसी के हर श्रेणी के लिए एक ही प्रतीक्षालय है. पहले जहाँ बैठने व सोने की सुविधा होती थी अब वहाँ केवल प्लास्टिक या स्टील की

कुर्सियाँ होती हैं. उनकी तादाद भी इतनी कम होती है कि उनसे करीब दो या तीन गुना यात्री तो जमीन पर बैठे पसरे मिल जाएंगे. क्या रेलवे को यह उचित नहीं लगता कि यात्रियों की तादाद के हिसाब से प्रतीक्षालय बनाए जाएं. या फिर प्रतीक्षालय – सुविधाओं के अंतर्गत नहीं आता. अब लगता है अच्किछा हो कि रेलवे प्रतीक्षालय के भी आरक्षण करवा लिया करे. लोगों को सुविधा मिलेगी और रेलवे की भी आमदनी बढ़ेगी.

रही सुधार की बात तो गाड़ियों में एसी अटेंडेंट व कोट अटेंडेंट को ठेके पर रख लिया गया. सेवाओं में उन्नति नहीं अवनति हुई है. पहले रेलवे कर्मचारी उनके अफसरों से शिकायत को डरता था अब तो ठेकेदार किसी की नहीं सुनते, बल्कि जवाब भी बेढंगे दिए जाते हैं. एक बार एक अटेंडेंट से विनती की कि भई बहुत थका हूँ शायद नींद न खुले सुबह स्टेशन पर जगा देना. उसने तो अनसुनी कर दी. फिर टीटी ई से बात की तो बताया गया कि साहब आप उनसे कुछ मत कहिएगा .. कभी कभी वे बेत़ृकार की बात कह देंगे तो आपको बुरा लग जाएगा. रेलवे स्टाफ से कहिए तो वह काम कर देगा. अंततः टी टी ई ने सुबह जगाने का काम किया.
नई दिल्ली स्टेशन का एसी यात्रियों का प्रतीक्षालय-3
नई दिल्ली स्टेशन का एसी यात्रियों का प्रतीक्षालय-4
बेड रोल के पैकेट में दो चादर व एक फेस टॉवेल होता है. अक्सर अटेंडेंट बिना टॉवेल के चादर दे जाता है. केवल माँगने पर ही टॉवेल दी जाती है. कहते हैं कि पेसेंजर टॉवेल ले जाते हैं. यदि पेसेंजर के उतरते वक्त अटेंडेंट चादर – टावेल माँगे, तो ऐसे हादसे बहुत ही कम हो जाएंगे. गाड़ी गंतव्य पर रुकने के बाद भी शायिकाओं पर कंबल, चॉदर टॉवेल पड़े रहते हैं. तब सब सुरक्षित रहता है. उनको किसी की सुननी है ही नहीं. अक्सर चादर फटे पुराने व मैले होते हैं. उतरे हुए यात्रियों द्वारा उपयोग किए गए चादर किसी तरह मोड़कर लिफाफे में रख कर भी दिए जाते हैं. शिकायत पर बेचारा अटेंडेंट मारा जाता है. ठेकेदारों की बाल भी बाँका नहीं होता. उसका (अटेंडेंट) कहना है कि मुझे जैसे कपड़े मिलेंगे मैं वैसे ही तो दे पाऊंगा. बात जायज लगती है. निगरानी करने वाले कुछ ध्यान दें तो ही स्थिति सुधर सकती है. अब समय आ गया है कि रेलवे यूज एंड थ्रो प्रकार के चादर व टॉवेल का प्रयोग शुरु कर दे. या फिर टिकट में ही पूछकर चादर टॉवेल दिया जाए और उसे यात्री अपने साथ ले जाएं या फेंके उनकी जिम्मेदारी- चार्ज तो टिकट के साथ ले लिया जाएगा.


वैसे ही कॉटेरिंग के हालात हैं. कई तरह के कानूनों के बाद भी पेंट्रीकार वाले गाडियों में भी बाहर के प्राईवेट वेंडर चाय, बिस्किट, नाश्ते चेन-ताले, बूट पॉलिश गुड़िए, मेगाजिन्स, अखबार इत्यादि बेचते खुले आम नजर आते हैं. जब बंद करना ही नहीं है तो कानून क्यो बनाए जाते हैं. या फिर रेलवे चाहती है कि स्टेशन स्टाफ भी कुछ कमाई कर ले. वैसे इन दिनों जहर खुरानी की खबरे बहुत हो गई हैं किंतु इस पर रेलवे के अदिकारियों का ध्यान अभी तक नहीं गया है. न जाने किस बड़े हादसे का इंतजार किया जा रहा है.

मुझे संकोच है कि क्या कोई रेलवे का अधिकारी किसी ट्रेन में खाना खाकर अनुभव करता भी है कि यह कैसा है. कई बार पंखे चलते नहीं हैं... ए सी की सेटिंग पर कोई ध्यान नहीं है, कभी पसीने छूटते हैं तो कभी बर्फ जमने लगती है और एटेंडेंट अपनी शाय़िका पर खर्राटे भरते सोते रहता है.


खिड़की की तरफ की शायिकाओं का हाल-1
टॉयलेट में पानी नहीं होने की समस्या तो अर्ध शती पुरानी है. बचपन में इसी से तंग आकर मैंने सफर के दौरान कुछ भी नहीं खाने का प्रण लिया था जो आज भी कायम है.

जब बात आती है शायिका उपलब्ध कराने की तो देखा गया है कि पहले आरक्षण करने वाले को इमेर्जेंसी खिड़की के पास औकर खिड़की की तरफ की शायिकाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. और बाद में करने से क्यूबिकल के भीतर की शायिकाएं मिल रही हैं. बुजुर्ग जो लोवर बर्थ (निचली शायिका ) माँगते हैं उनको खिड़की के पास की निचली शायिकाएं दी जाती हैं खास कर 55 वर्ष से ऊपर के लोगों को कमर व पीठ की समस्यायें रहती हैं और खिड़की के पास की निचली शायिकाओं की हालत उनके लिए बहुत ही असुविधाजनक होती है. इस पर महाप्रभु ने कुछ सोचा ही नहीं. ऐसे ही एक हालात के फोटोग्राफ मैं शामिल करने की कोशिश कर रहा हूँ. शायिका के दोनों हिस्सों में करीब दो इंच का लेवल फर्क है. कोई सोए तो कैसे. यह हालत सभी गाड़ियों में एक सी है.

खिड़की की तरफ की शायिकाओं का हाल-2
दूसरा – खिड़की के पास की शायिकाएं लंबाई में भीतर की शायिकाओं से छोटी हैं. इससे लंबे लोगों को बहुत तकलीफ होती है. थ्री टीयर (एसी में भी) के ऊपरी बर्थ पर कोई बैठकर पानी भी नहीं पी पाता – बोतल छत से टकरा जाती है. इन पर विचार करना – रेलवे के मनीषियों को भाता नहीं है क्या ?


टिकटिंग की बात करें तो इंटरनेट टिकटिंग की सुविधा तो दी है किंतु ऐसी कई सुविधाएं हैं जो इंटरनेट पर नहीं हैं पर टिकट खिड़की पर उपलबध है. मुझे तो कोई तसल्लीबख्श कारण नजर नहीं आता. शायद रेलवे के जानकार कुछ बता पाएं तो अच्छा होगा.

1.   टेलिस्कोपिक किराया सुविधा इंटरनेट वाले ग्राहकों को उपलब्ध नहीं हैं.
2.   इंटरमीडिएट स्टेशन बोर्डिंग की सुविधा भी इंटरनेट वाले ग्राहकों को उपलब्ध नहीं हैं.
3.    जहाँ टिकट खिड़की के बुक किए वेईटिंग टिकट पर यात्री सफर के दौरान शाय़िका की माँग कर सकता है और उपलब्ध होने पर उसे दी जाती है वहाँ इंटरनेट टिकट गाड़ी के आरक्षण चार्ट बनते ही – आरक्षित न होने पर - अपने आप रद्द हो जाता है और उस पर यात्री सफर भी नहीं कर सकता. यह सुविधा है या असुविधा रेलवे ही बताए.

खिड़की की तरफ की शायिकाओं का हाल-3
4.      4.  और तो और रेलवे के पास व पी टी ओ (सुविधाओं) पर – इंटरनेट से आरक्षण नहीं हो सकता है. यानी रेल कर्मचारी अपनी सुविधा को इंटरनेट से नहीं पा सकता उसे टिकट खिढ़की पर जाना जरूरी है. जहाँ तक कार्यरत लोगों की बात है – उम्र उनका साथ देती है लेकिन रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए यह मात्र असुविधा ही नहीं, सजा है. पूरे परिवार के साथ सफर करने पर भी उनकी टिकट के लिए खिड़की पर आरक्षण की मजबूरी है . इससे बर्थ मिल भी जाए, तो यहाँ वहाँ मिल जाते हैं और फिर बुजुर्ग परेशान होते रहते हैं.

5.    इन सबसे बढ़कर है आरक्षित डिब्बों में अनारक्षित यात्रियों का सफर. शाम के लौटने वाले व सुबह नौकरियों पर जाने वाले दैनिक यात्री तो स्लीपर कोच में यात्रा करना अपना अधिकार समझते हैं. टिकट चेकिंग स्टाफ के परिचित इन लोगों से वे टिकट भी नहीं पूछते.  रेलवे के कर्मचारी तो धड़ल्ले से एसी स्लीपर में भी सफर करते नजर आते हैं.

मेरा प्रस्ताव है कि रेलवे इस पर गंभीरता से विचार करे और कोशिश करे कि गाड़ियों के समय – यथा संभव इस सुविधा के प्रतिकूल रहे. हाँ यह पूरी तरह सभव नहीं है. अन्यथा ऐसी गाड़ियों में डेली पेसेंजरों के लिए कुछेक बोगियाँ लगा दें, जिससे आरक्षित यात्रियों का सफर सुहाना हो सके. 

इंटर सिटी जैसी गाड़ियों बढ़ाई जाएं जिनमें दैनिक यात्री सफर कर सकें. ऐसा करना संभव भी है. रेलवे के कर्मचारियों को पास के अन्य स्टेशन में रहने की सुविधा देने पर किसी शुल्क पर मासिक पास अनिवार्य किया जाए.

आज के जमाने में भी कई लंबी दूरी की गाड़ियों के हर शायिका पर मोबाईल व लेपटॉप चार्जर नहीं लगे हैं. अब इंटरनेट सुविधा की सोची जा रही है. अटेंडेंट और टीटीई तो शिकायत पुस्तिका देने से भी मना कर जाते हैं कई बार तो कहा जाता है कि शिकायत पुस्तिका गार्ड के पास है- यह सब उपलब्ध नहीं कराने के बहाने हैं. आज के इंटरनेटयुग में शिकायत पुस्तिका तो हटा ही देनी चाहिए और नेट पर इन सबकी सुविधा उपवलब्ध करा दी जानी चाहिए.  

अंततः कहना चाहूँगा कि -

कम से कम सुपरफास्ट ट्रेनों में तो बिना आरक्षण सफर बंद ही कर देना चाहिए. इंटरनेट पर बुक की गई टिकटों को – गाड़ी विशेष के मंजिल पर पहुँचने के बाद ही स्वतः निरस्त होना चाहिए . वेईटिंग वाले यात्री खिड़की टिकटों की तरह सफर कर सकना चाहिए. रेलवे के पास-पीटीओ धारकों के लिए भी इंटरनेटपर आरक्षण की सुविधा होनी चाहिए. 

बात रही अन्य जन सुविधाओं की रेलवे के चाहिए कि अपने बातों से नहीं काम से बताए कि सुविधाएं बढ़ रही हैं.


अच्छा होगा कोई रेलवे विभाग का कर्मचारी इसे प्रभु या फिर महाप्रभु तक पहुचाने में मदद करे. देखें कही जूँ भी रेंगती है या नहीं.

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अयंगर.